श्री सद्गुरु महाराज के चरणों में जितने कसीदे पढ़े जाए उतने कम है |

फिर भी उनकी शान में कुछ केहने की कोशिश करता हूँ |


जलज, सकल जग माहीं, समर्थ सद्गुरु सैम नाहीं |

ये दीनबंधु, कृपासिंधु है, प्रभु स्वरुप जग माहीं ||

जलज, जगत व्यर्थ गिरे, गिर पद सद्गुरु शीश नवाय |

जगत माया बंध दुखकारक है, सद्गुरु रज भव तरवाय ||

जलज, सद्गुरु भांति भांति कर, शिवरूप ध्यान करवाय |

कभी प्रेम कभी धौंस से, निज स्वरुप दर्श करवाय ||

जलज, जीव मुक्ति मार्ग, तब ही सुगम जान |

ह्रदय कुञ्ज निवास करे, जब सदुरु शक्ति महान ||

जलज, ज्ञान चक्षु खोल कर, भाव कर्ता का जलाय |

ज्ञान प्रेम संगम करवा, सद्गुरु निज धाम दर्श करवाय ||

जलज, सद्गुरु, साधना जोत से, चित्त शुद्धी करवाय |

द्वैव भाव नष्ट करवा, अद्वैव भाव चित्त जगाय ||

वैराग्य, मुक्ति, भक्ति, सद्गुरु की ये पहचान |

माया मोह तज अब, जलज बस धरे हरी का ध्यान ||

गमें हद से ये जालिम गुजर जायेंगे,

हम भी ऐसा कुछ काम कर जाएंगे,

तुम मानो तो मानो नहीं ठीक है,

हम भी बाजी जान की लगा जायेंगे,

तेरे दर के भिखारी कहाँ जायेंगे,

तेरी चौखट पे रख के सिर मर जायेंगे,

तुम मानो तो मानो नहीं ठीक है,

हम भी कुर्बान दिल तुम्हे कर जायेंगे |